Sunday 23 September 2018

"आडम्बर का आँचल "

अरमानों के तम्बू में
बेबसी रोज़ उसकी दीवारों को
कुतरने आती है
लेकिन वो हर बार हार जाती है
क्योंकि अरमानों के चिथड़ों को सिलकर
वह प्रतिदिन ओढ़ लेती है
आडम्बर का आँचल ।


              -निशा ठाकुर ।

"आत्मविश्वास "

ताउम्र एक द्वंद्व सा चलता रहता है,
खुद का खुद से
इस ऊहापोह में कि जो कहा, जो किया
या जो कर रही हूँ
वो सही है या नहीं
उसका परिणाम क्या होगा?
अनवरत इन प्रश्नों के जाल बुनते-बुनते
एक समय वह भी आता है, जब
वो जाले खुद की ही आँखों में खटकने लगते हैं,
चुभने लगते हैं, सालने लगते हैं खुद की आत्मा को,
क्योंकि सार्थक और निरर्थक के अवलंबन से आसक्त होकर
हम उत्तरोत्तर बढ़ते जाते हैं ह्रास की ओर
और मन चाहता है कि बीतते वक़्त की कमीज पर
वो टाँक दे एक ध्रुवतारा
जिसकी रौशनी में
प्रतिपल बढ़ती रहे उसकी ऊष्मा, उसकी ऊर्जा,
उसका ओज और उसका आत्मविश्वास ।

            -निशा ठाकुर ।

Saturday 8 September 2018

"स्मृतियों के धागे "

मैं आत्म-मंथन करती
कुछ सोच रही थी ,
सामने कुछ भी प्रत्यक्ष नहीं था।
 सब कुछ धुँधला सा दिखता था,
 उन धुँधली तस्वीरों को मैंने
मन की आँखों से टटोलना शुरू किया
 तो मैंने पाया कि
सब कुछ तो वैसा ही था
 जैसा मैं छोड़ आयी थी।
आज भी
मेरे टेबल पर किताबों के पन्ने
यूँ ही उल्टे पड़े हैं,
 मेरे कमरे की खिड़कियाँ और दरवाजे
 किसी नव आगंतुककी प्रतीक्षा में
 बाहें फैलाये खड़ी हैं
 जैसे उन्हें किसी के आगमन की आशा है,
 सूरज की रेशमी किरणों में
रिश्तों की उलझन भी
 सुलझती प्रतीत हो रही है ।
मैंने देखा
मेरी आँखों में अरमानों की विकल प्यास
अब भी तरो ताजा थी
 साँझ की बदरी से छन-छन कर
यादों की स्मृतियाँ
 उस खाली कमरे में उतर रही थी,
सब कुछ प्रत्यक्ष होकर भी
 अप्रत्यक्ष सा था क्योंकि
मानसपटल पर एक बिजली की भाँति कौंधी थी
 ये स्मृतियाँ और
 मैं उन स्मृतियों के धागे में
अतीत के मोती पिरोने लगी थी
 आहिस्ता-आहिस्ता।।



                     -निशा ठाकुर ।

"प्रेम "

प्रेम वो चिराग है जिसकी लौ कभी बुझती नहीं ,
प्रेम वो सागर है जिसकी गहराई कभी कमती नहीं ,
प्रेम वो खामोशी है जिसकी आवाज कभी मरती नहीं ,
प्रेम वो सुकून है जिसकी बेचैनी कभी मिटती नहीं ,
प्रेम वो उजाला है जिसकी रौशनी कभी घटतीनहीं ,
प्रेम वो नदी है जिसकी धारा कभी रूकती नहीं
प्रेम वो मदिरा है जिसकी प्यास कभी बुझती नहीं ,
प्रेम वो हर्ष है जिसकी खुशी कभी कमती नहीं ,
प्रेम वो आदर्श है जिसकी चाहत कभी थमती नहीं ,
प्रेम वो संगीत है जिसकी लय कभी छूटती नहीं
प्रेम वो विश्वास है,जिसकी डोर कभी टूटती नहीं।।


                 -निशा ठाकुर ।

"प्यार "

प्यार जीने का आधार है,
भावनाओं का सार है,
 जीवन के लिए ये ,
संजीवनी इच्छाओं का संचार है,
 दैहिक अभिसार नहीं,
 ये एक सुंदर विचार है,
दिल के जज्बात पर ये,
सहमति का अहसास है ,
दिल जीतने की प्यास है ,
और उस पर लुट जाने की आस है ,
भावों के बवंडर में एक कोमल आभास है,
जिन्दगी जीने के लिए प्यार ही हर्ष है ,
और बस प्यार ही आदर्श है ।


                    -निशा ठाकुर ।

Thursday 6 September 2018

"ख्वाहिशें"

ख्वाहिशें झाँकती हैं,
बड़ी हसरत से,
मन की अधखुली खिड़कियों से
ऐसा लगता है मानो
वो उन खिड़कियों को खोल
 उड़ जाना चाहती हैं
अपनी चाहतों के पंख लगाकर
दूर बहुत दूर
हवाओं के रूख के विपरीत
बादलों का सीना चीर
जहाँ कोई बंधन उन्हें बाँध न सके ।
ख्वाहिशें दिन में उगते सूरज के साथ,
 बढ़ जाना चाहती हैं
और रातों में
चाँदिनी की तरह
 बिछ जाना चाहती हैं,
 पूरे आकाश में
 एक  चादर के  समान ।
इन ख्वाहिशों का सूर्य
कभी अस्त नहीं होता।
सितारों से ये लटके हुए हैं ,
मखमली अंधेरों की शाखों पर ,
और रौशन है जिन्दगी,
 इन्हीं ख़्वाहिशों के वजूद पर ।।


                -निशा ठाकुर ।

Wednesday 5 September 2018

"जो ठहर गयी वो जिन्दगी कहाँ "

अक्सर देखा है
टूट जाती हैं डालियाँ,
सूख जाते हैं पत्ते,
झड़ जाते हैं फूल ।
पर नहीं टूटती है उम्मीद,
नहीं सूखते हैं उम्मीदों में बहने वाले
आशाओं के सोते,
नहीं झड़ते हैं स्वप्न पलकों की डालियों से,
वो फिर संजोये जाते हैं,
फिर पिरोये जाते हैं,
एक नए स्वप्नों की माला के निर्माण के लिए,
जीवन का सफर भी कुछ यूँ ही होता है,
हम अपनी मंजिल को पाने के लिए
ऐसे ही राहों से गुजरते हैं,
थकते हैं, चलते हैं, बैठते हैं,
पर रूकते नहीं,
क्योंकि जो ठहर गयी वो जिन्दगी कहाँ ।

               -निशा ठाकुर ।